क्या हो अगर हम सहारा डेज़र्ट को हरा-भरा बना दें? What If We Terraformed The Sahara Desert?

क्या हो जलवायु परिवर्तन से लड़ने की कोशिश में सहारा डेज़र्ट यानी सहारा मरुस्थल को हरा बनाया जा सकता है वास्तव में। 

पूरे सहारा डेज़र्ट को हरा-भरा बनाने की योजना बनाई जा रही है इसे एक सूखी बंजर ज़मीन से बदलकर एक घनी हरियाली वाली जगह में बदलने की योजना। अगर ये सफल हो पाता है, तो ये बदलाव हर साल वातावरण में मौजूद 7.6 अरब टन कार्बन को हटा सकता है। 

हम ज़मीन के इतने बड़े, अलग-थलग पड़े हिस्से का स्वभाव कैसे बदल सकते हैं? 

आप पढ़ रहे हैं ‘‘क्या हो अगर’’ और ये है क्या हो अगर हम सहारा डेज़र्ट को हरा-भरा बना दें? 


सहारा डेज़र्ट आकार में 86 लाख वर्ग किलोमीटर (33.2 लाख वर्ग मील) जितना बड़ा है। यानी अगर आप अमेरिका को रेत से भर दें और यहां से सारे पेड़-पौधे हटा दें तो लगभग अमेरिका जितना बड़ा। 

इतने बड़े इलाक़े को हरा-भरा बनाना आसान नहीं होगा बल्कि इसमें 20 खरब डॉलर का सालाना खर्च आएगा और बद्क़िस्मती से, इसका खर्च हमारे सामने आने वाली दिक्कतों की केवल शुरुआत है। 


आगे जाकर पर्यावरण पर इसका किस तरह का असर होगा?:-

पेड़-पौधे पृथ्वी के फेफड़ों की तरह हैं और इस वक़्त हमें इससे बहुत ज़्यादा पेड़ों की ज़रूरत है। एक हेक्टेयर में लगे पेड़ उतना ही कार्बन डाईऑक्साइड सोख सकते हैं जितना एक गाड़ी को 100,000 किलोमीटर (62,000 मील) चलाने में निकलता है। 

अगर हम सफलता के साथ सहारा को हरा-भरा बना पाते हैं तो कई लाख हेक्टेयर पेड़ जलवायु परिवर्तन के खिलाफ हमारी लड़ाई में हमारा साथ देने लगेंगे। ये सब सुनने में बहुत अच्छा लगता है।

पर कितनी संभावना है कि हम इस तरह का बदलाव ला सकेंगे? 

आप मानें या ना मानें, हमने ये पहले भी किया है, बस थोड़े छोटे स्तर पर। चीन के कुबुकी ईकोलॉजिकल रिस्टोरेशन प्रोजेक्ट में एक-तिहाई कुबुकी डेज़र्ट को 30 साल के वक़्त में लगभग 70 अलग-अलग पैधों की प्रजातियों के साथ हरा-भरा बनाया गया था। 


Ecological Restoration Project

हम पृथ्वी के सबसे बड़े गर्म रेगिस्तान के स्तर पर ये प्रक्रिया कैसे पूरी कर सकते हैं?:- 

एक तरीक़ा है, फसलें और पेड़ लगाना और फिर इन्हें सीचने के लिए सहारा के तट से नमक निकला हुआ पानी लाना। पानी को भाप बन कर उड़ने से बचाने के लिए इसे ज़मीन के नीचे बने पाइपों के ज़रिए सीधे जड़ों तक लाना होगा।


यहां लगाने के लिए सबसे अच्छे पेड़ होंगे eucalyptus यानी नीलगिरि क्योंकि ये दमदार होते हैं, और गर्म तापमान में आराम से रह सकते हैं। साथ ही, ये तेज़ी से बढ़ते हैं और इस क्षेत्र के लिए आर्थिक रूप से फ़ायदेमंद हो सकते हैं।

 

जैसे ही पेड़ों में जड़ें आने लगेंगी और वो स्थिर होने लगेंगे इससे मिट्टी में ज़रूरी पोषक तत्व आ जाएंगे बारिश की मात्रा बढ़ जाएगी, और सहारा के कुल तापमान में 8 डिग्री सेल्सियल (14.5 डिग्री फारेनहाइट) की गिरावट हो जाएगी। 

ठीक है जब हम जलवायु परिवर्तन के खिलाफ अपनी लड़ाई में तेज़ी से हारते जा रहे हैं तो हम इस तरह के अहम और अच्छे समाधान की तरफ तेज़ी से आगे कदम क्यों नहीं बढ़ा रहे?

सबसे पहले तो, क्या हमने आपको बताया था कि इसका सालाना ख़र्च 20 ख़रब डॉलर होगा? तो अंतर्राष्ट्रीय सरकारों को इसमें योगदान देने के लिए राज़ी करने को तैयार रहिए ख़ासतौर से अगर ये केवल इंसानी प्रजाति की भलाई के लिए है। 

पर अगर हम ये खर्च उठा भी सकें, तो सहारा डेज़र्ट को हरा-भरा बनाने में और भी कई दिक्कतें होने वाली हैं। जैसे-जैसे ये क्षेत्र नए पेड़ लगने की वजह से नम होता जाएगा वैसे-वैसे टिड्डियों के हमले का ख़तरा भी बढ़ता जाएगा। जी हां, टिड्डियां झुण्ड में आने वाले इन कीड़ों के बारे में आपने बाइबल में पढ़ा होगा। 

रुकिए, टिड्डियां इतनी भी बुरी नहीं हो सकती, है ना? 

“एक छोटी टिड्डी एक दिन में 2,500 लोगों के खाने जितना खाना खा जाती है”

 तो हां, ये बुरी साबित हो सकती हैं। हालांकि, सहारा को हरा-भरा बनाने की सबसे बड़ी समस्या होगी आगे जाकर पर्यावरण पर होने वाला इसका असर। 

सहारा की रेत आंधी के ज़रिए हवा में शामिल होती है और अट्लांटिक महासागर को पार करने के बाद दक्षिण अमेरिका में इकट्ठी होती है। ये धूल रास्ते में अपने अंदर नमी सोख लेती है और जब ये आसमान से गिरती है तो इसके साथ बारिश होती है। 

धूल और बारिश का ये मेल अमेज़न वर्षावन पर गिरता है और ईकोसिस्टम को वो पानी देता है जिसकी इसे ज़रूरत है। सहारा के ना होने का मतलब ये भी हो सकता है कि अमेज़न वर्षावन भी नहीं रहेंगे बशर्ते इस परेशानी के लिए भी कोई योजना हो। 

तो हालांकि एक हरे-भरे सहारा से हमारी कार्बन उत्सर्जन की समस्या का हल हो जाएगा पर क्या इसके लिए हमारे ग्रह के दूसरे हिस्से को बर्बाद होने देना सही होगा?

शायद इतनी बड़ी जगह को हरा-भरा बनाने की जगह हमें दुनियाभर में हरियाली बढ़ाने के बारे में सोचना चाहिए लेकिन इस पर चर्चा के लिए पढ़ते रहें ‘‘क्या हो अगर’’ 

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