क्या हो अगर अंटार्कटिका के सोते हुए ज्वालामुखी जाग जाएं। Antarctica's Dormant Volcanoes Work Up?

लाखों साल पुरानी बर्फ की मोटी चादर की गहराई में, कुछ है जो चुप-चाप बैठा है और इन चादरों को भेदते हुए बाहर आने की फिराक में है। 

नहीं नहीं, ये नहीं। इस बड़ी बर्फीली जगह के नीचे कई ज्वालामुखी हैं। और हमारी काल्पनिक दुनिया में ये ज्वालामुखी जागने वाले हैं। 

क्या ये गर्म पिगल ने वाला लावा धरती की सतह को बर्बाद कर सकते है? या क्या अंटार्कटिका की मोटी बर्फ़ लावा को बहने से रोक देगी?

आप देख रहे हैं ‘‘क्या हो अगर’’ और ये है क्या हो अगर अंटार्कटिका के सोते हुए ज्वालामुखी जाग जाएं?

Image credit :- Whatifshow.com

अंटार्कटिका हमारी धरती का सबसे ठंडा महाद्वीप है। और ये काफी रहस्यमय भी है। जब तक 2013 में वैज्ञानिकों ने अचानक छोटे भूकंपों के दो समूहों की खोज नहीं की थी, हम ये भी नहीं जानते थे कि इसके नीचे सक्रिय ज्वालामुखी दफ्न हैं। 

और अब जब हमने अंटार्कटिका की बर्फ को भेद सकने वाले रडार की मदद से देखा है, हम जान चुके हैं कि यहां कि बर्फ के नीचे और कई ज्वालामुखी छुपे हैं। 

गिनती में बताएं तो 138 है लेकिन ये तो केवल वो हैं जिनकी जानकारी हमारे पास है। और ना जाने कितने ज्वालामुखी यहां और होंगे।

•और अगर अचानक ये ज्वालामुखी नींद से जाग जाते हैं, तो ये किस तरह की तबाही हमारे लिए ला सकते हैं? 

ये बात इतनी भी चैंकाने वाली नहीं है कि ये भयानक आग उगलने वाले ज्वालामुखी इतने वक़्त से अंटार्कटिका की बर्फ के नीचे दफ्न हैं। 

आखिरकार ज्वालामुखी तो हमारे ग्रह के बाहर भी आसानी से देखे जा सकते हैं। बृहस्पति के चांद आयो पर, शनि के चांद एन्सैलेडस पर, और हमारे पड़ोसी शुक्र पर भी ज्वालामुखी हैं। लेकिन हम वहां वक़्त बर्बाद नहीं करेंगे। हमें पहले अपनी दुनिया को बचाना है। 

•क्या आप जानते हैं कि एक ज्वालामुखी के फटने पर क्या होता है? 

आमतौर पर, असल एक्शन शुरू हो पाने के पहले ही चेतावनियां मिल जाती हैं, जैसे कि भूकंप की लहरें उठना। इससे पता चलता है कि सतह के नीचे पिघले हुए पत्थर हैं। 

फिर लावा राख और गर्म गैसें भी इसमें शरीक हो जाती हैं। ये कई तरह के हालातों और लावा के टाइप पर निर्भर करता है लेकिन औसतन बाहर आने वाले लावा की रफ्तार 10 कि.मी (6 मील) प्रति घंटा होती है। 

इससे भाग पाना आसान है। लेकिन एक बड़ा विस्फोट होने पर एक ज्वालामुखी से बेहद गर्म गैसें और राख निकलती है। साथ मिल कर, ये पाइरोक्लास्टिक क्लाउड नाम की एक चीज़ बनाती हैं। ये गर्म होता है, इतना गर्म कि ये तापमान 700° सेल्सियस (1300° फारेनहाइट) तक जा सकता है, और ये 80 कि.मी. (50 मील) प्रति घंटे की रफ्तार से बहता है। 

इनमें से किसी की भी चपेट में आने का मतलब होगा आपकी ज़िंदगी के दिन ख़त्म। लेकिन अंटार्कटिका के ज्वालामुखियों की बात अलग है। ये बर्फ की ऐसी मोटी चादर के नीचे दफ्न हैं जो कहीं-कहीं पर 4 कि.मी. (2.5 मील) से भी ज़्यादा मोटी है। 

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हमें ज्वालामुखी से निकलने वाली गैस का सामना नहीं करना होगा कम से कम एक विस्फोट होने पर तो नहीं। इससे निकलने वाली गर्मी से बर्फ के बड़े हिस्से पिघल जाएंगे यानी पानी तेज़ी से बढ़ने लगेगा। और यहां से चीज़ें बिगड़ने की शुरुआत होगी। 

ताज़ी पिघली बर्फ की वजह से बढ़ा पानी बर्फ को और तेज़ी से बहाकर ले जाएगा। अंटार्कटिका की बर्फ समुद्र की तरफ बढ़ने लगेगी। यहां से, डोमिनो इफेक्ट की शुरुआत होगी। 

बर्फ के भार से ज्वालामुखी पर दबाव बना रहता है, जिससे ये स्थिर रहते हैं। लेकिन ये दबाव कम करते ही ज्वालामुखी में फुर्ती आ जाएगी और मैग्मा विस्फोट के ज़रिए बाहर आने लगेगा। अंटार्कटिका के केस में कुछ ज्वालामुखी फटने से सैकड़ों दूसरे ज्वालामुखी जाग जाएंगे और पूरा इलाका अस्थिर हो जाएगा। 

जैसे-जैसे ज्वालामुखियों के ऊपरी हिस्सों में धमाके होते जाएंगे, पानी बढ़ता जाएगा जिससे अंटार्कटिका की बर्फ के बड़े हिस्से समुद्र में खिसकते जाएंगे। यहां की बर्फ गर्म पानी की धारा से घिर जाएगी। 

एक तरफ तो हमें अंटार्कटिका के वो नज़ारे देखने को मिलेंगे जो अब तक बर्फ के नीचे छुपे थे। वहीं, दूसरी तरफ ये बर्फ ऐसे ही हवा नहीं होगी। ये पिघलेगी। और अगर अंटार्कटिका की सारी बर्फ बह जाए तो दुनिया भर के समुद्र स्तर में लगभग 60 मीटर (200 फीट) की बढ़त आएगी। 

समुद्र के बढ़ते स्तर से भयानक तूफान आएंगे जिनकी गति धीमी होगी और बारिश बढ़ती जाएगी। हरिकेन और टाइफून धरती की सतह पर तबाही ला देंगे। तटीय इलाकों का जंगली जीवन अस्त-वियस्त हो जाएगा और खेती वाले इलाकों की मिट्टी नमक भरने से खराब हो जाएगी। 

तेज़ बाढ़ के चलते लाखों लोगों को तटीय इलाकों से दूर बसना होगा। और अगर ये सारे ज्वालामुखी एक दिन के अंदर फटते हैं, तो हमारे सामने हज़ारों मौतें होंगी और तूफान समुद्र की सतह पर तैर रही हर चीज़ को ख़त्म कर देगा। लेकिन चलिए एक सेकेंड के लिए अंटार्कटिका पर वापस चलें। 

•अब जब बर्फ पिघल चुकी है तो बहते मैग्मा का क्या होगा? 

अच्छी खबर ये है कि इससे धरती लावा से भरी दुनिया में नहीं बदलेगी। आखिरकार ये धमाके पानी के नीचे ही तो होंगे। ये गर्म मैग्मा अंटार्कटिका के ठंडे पानी से ठोस हो जाएगा और शायद इससे अंटार्कटिका की ज़मीन बिकने-खरीदने लायक भी हो जाए। 

लेकिन चीज़ें यहां ख़त्म नहीं होती। जब ज्वालामुखी ज़मीन पर फटते हैं, तो इनमें से कार्बन मोनोऑक्साइड, मीथेन, कार्बन डाईआक्साइड और नाइट्रोजन जैसी गर्म गैसें निकलती हैं। और इनके साथ आमतौर पर गर्म भाप भी होती है। 

कुछ आंकड़ों के मुताबिक, ज्वालामुखियों से हर साल 64 करोड़ 50 लाख टन CO2 यानी कार्बन डाईआक्साइड निकलती है। अगर अंटार्कटिका के ज्वालामुखियों में बहुत बड़े धमाके होते हैं, तो ये बर्फ के बड़े हिस्सों को खोल देंगे जिससे और भी कई ज़हरीली ग्रीनहाउस गैसें निकलने लगेंगी। 

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जब अंटार्कटिका की सतह पर मौजूद ज्वालामुखियों में से एक माउंट ताकाहे 18,000 साल पहले फटा था। इससे निकले रसायनो ने ओज़ोन लेयर में एक होल बना दिया था इस होल के चलते दक्षिणी हेमिस्फेयर में गर्मी बढ़ी थी और ग्लेशियरस पिघलने लगे थे। 

इसी से आखरी आइस एज ख़त्म हुई थी। अब ज़रा एक साथ सैकड़ों ज्वालामुखियों के फटने के बारे में सोचिए। ये हमारे ग्रह के लिए बहुत बुरा होने वाला है। लेकिन फिक्र ना करें। अंटार्कटिका के ज्वालामुखी एक साथ नहीं फटेंगे। अगर ये जागना शुरु होते हैं, तो कुछ भी हो पाने में दशकों का वक़्त लगेगा।  

मुझे तो अब भी लगता है कि हमें हर चीज़ के लिए तैयार रहना चाहिए। यहां तक कि समुद्र का स्तर बढ़ जाने की स्थिति में पानी के अंदर रहने के लिए भी। पर इसके लिए पढ़ते रहें ‘‘क्या हो अगर’’ .

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