आज से 5 अरब साल बाद सूरज फैल कर एक लाल दानव तारे यानी रेड जायंट में बदल जाएगा। और पृथ्वी इसके रास्ते में आ सकती है... अगर इंसान तब तक रहते हैं तो क्या हम पृृृथ्वी को छोड़ कर चले जाएंगे ? या हम इसे हटा लेगे ?
आप पढ़ रहे हैं ‘‘क्या हो अगर’’ और ये है क्या हो अगर हम पृथ्वी को हटा लें ?
What would happens If We Moved The Earth?
तो, सूरज के साथ समस्या क्या है? किसी भी दूसरे तारे की तरह इसके भी ख़त्म होने का एक वक़्त है। इस ख़ात्मे की शुरुआत होने पर हमारा सूरज एक रेड जायंट में बदल जाएगा जिससे इसके पास चक्कर लगाने वाली हर चीज़ बर्बाद हो जाएगी। जैसे कि पृथ्वी।
अगर हम ज़िंदा बचना चाहते हैं तो सूरज के तबाही मचाने के पहले ही हमें कोई क़दम उठाना होगा। पृथ्वी पर रहने वाले 7.5 अरब लोगों को यहां से निकालने के लिए एक अरब अंतरिक्ष शटल्स की ज़रूरत होगी।
अगर हम हर दिन 1,000 शटल्स भी लॉन्च कर पाते हैं तो इस बर्बाद हो रहे ग्रह से सबको निकाल पाने के लिए 2,700 सालों का वक़्त लगेगा। शायद हम पूरे के पूरे ग्रह को यहां से निकाल कर ख़ुद को इस परेशानी से बचा सकते हैं? ये काफ़ी हद तक मुमकिन है ।
हमें बस पृथ्वी को सही दिशा में एक अच्छा-ख़ासा बढ़ावा देना होगा और इसे रास्ते पर रखना होगा। और ऐसा करने के कुछ तरीक़े हैं। ग्रह को ख़तरे से बचाने के लिए हमें इसकी वेलोसिटी यानी गति में 1,200 मीटर प्रति सेकेंड (3,937 फीट प्रति सेकेंड) का बदलाव लाना होगा।
इसमें आज तक में बने सबसे मज़बूत रॉकेट्स जैसे लगभग 7,000 रॉकेट्स की ज़रूरत होगी। पर इस योजना में एक बहुत बड़ी समस्या है। सूरज की बढ़ती लपटों से बचने के लिए हमें भाग कर बहुत दूर जाने की ज़रूरत होगी कम से कम मंगल के ऑर्बिट तक।
पृथ्वी जैसी भारी किसी चीज़ को ऐसी सुरक्षित जगह तक पहुंचाने के लिए अरबों सालों का वक़्त लग सकता है। और हर एक अरब साल में हम पृथ्वी के लगभग एक तिहाई भार को प्रोपेलेंट यानी प्रणोदक के रूप में इस्तेमाल कर रहे होंगे।
ये ज़्यादा कुशल तरीक़ा नहीं है, है ना? पृथ्वी को और ज़्यादा कुशलता से हटा पाने के लिए हमें इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन का सहारा लेना होगा। रॉकेट्स में इस्तेमाल होने वाले रसायनिक प्रोपल्शन से अलग इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन में ढ़ेर सारे भार की ज़रूरत नहीं होती।
हम हर एक अरब साल में पृथ्वी के भार का केवल 2 फ़ीसदी त्याग कर भी काम चला सकते हैं। आपको कोई अंतर पता भी नहीं चलेगा। लेकिन इस विकल्प के लिए बहुत सारी ऊर्जा की ज़रूरत होगी पृथ्वी पर अभी बनने वाली कुल ऊर्जा से 800 गुना ज़्यादा।
साथ ही, इस काम को करने में थोड़ी इंजीनियरिंग की भी ज़रूरत होगी। क्योंकि पृथ्वी लगातार घूम रही है किसी एक जगह पर लगा रॉकेट हमेशा सही दिशा में नहीं होगा। हमें पृथ्वी के इर्द-गिर्द रॉकेट्स लगाने होंगे और इन सभी को एक तय वक़्त पर फायर करना होगा।
इससे पृथ्वी सही रास्ते पर बनी रहेगी। इस ग्रह को ख़तरे वाली जगह से बाहर ले जाने के लिए अरबों सालों का वक़्त लगेगा। अनुमान में किसी भी तरह की ग़लती का मतलब होगा विलुप्ति। और इसमें एस्टेरॉयड्स काम आएंगे।
अंतरिक्ष इंजीनियर्स एक गुरुत्वीय गुलेल जैसी किसी चीज़ का इस्तेमाल करते हैं जिससे अंतरिक्ष यान का रास्ता ज़्यादा प्रोपेलेंट के इस्तेमाल के बिना बदला जा सकता है। जब एक अंतरिक्ष यान पृथ्वी की तरफ़ बढ़ता है और उसके गुरुत्वीय खिंचाव को छोड़ता है तो इसे पृथ्वी की थोड़ी ऑर्बिटल ऊर्जा मिल जाती है।
हम इस प्रभाव के इस्तेमाल से अपने ग्रह का रास्ता बदल सकते हैं। सबसे पहले, हमें कॉमेट्स यानी धूमकेतुओं और एस्टेरॉयड्स को पृथ्वी के पास से निकालना होगा जिससे इस प्रक्रिया में कुछ ऊर्जा एक से दूसरी जगह जा सके।
इसके बाद, इंजीनियर एस्टेरॉयड्स को बृहस्पति और शनि के पास से निकालेंगे। वहां से, ये एस्टेरॉयड्स पृथ्वी पर ऊर्जा वापस लेकर आएंगे। हम इस प्रक्रिया को तब तक दोहराते रहेंगे जब तक हम एक सुरक्षित ऑर्बिट तक ना पहुंच जाएं।
ज़ाहिर है, ये काफ़ी ख़तरनाक भी होगा। हिसाब में छोटी-सी ग़लती होने से एक विशाल एस्टेरॉयड हमारे ग्रह की तरफ़ आ सकता है और उस जीवन को तबाह कर सकता है जो आज हमारे सामने है।
अब, हम चांद को सौर मंडल के पास किसी सफ़र पर नहीं ले जा रहे होंगे। काफ़ी संभावना है, कि हम अपने आकाशीय दोस्त का साथ उसी वक़्त छोड़ देंगे जब हम पृथ्वी की ऑर्बिट को सूरज से दूर ले जा रहे होंगे।
बड़ा ख़तरा ये है कि पृथ्वी को हटाने से ग्रहों का पूरा सिस्टम गड़बड़ा जाएगा। इससे बुध या शुक्र अस्थिर हो सकते हैं जिससे वो बर्बादी के रास्ते पर जा सकते हैं। और उन ग्रहों को बचाने के लिए कोई नहीं है कम से कम, हमें तो ऐसे किसी के बारे में कोई जानकारी नहीं है।
शायद हम किसी और ग्रह को अपने घर की तरह इस्तेमाल करने के लिए रहने लायक बना दें। जानने के लिए देखते रहें ‘‘क्या हो अगर’’ .