हमारे सबसे बड़े ग्रह के तौर पर बृहस्पति की विशाल मौजूदगी से हमारा सौर मंडल बंधा हुआ है। इसका बड़ा आकार और गुरुत्वीय खिंचाव इसे एक डेंस यानी गाढ़ा वातावरण देते हैं जो कि हाइड्रोजन और हीलियम का एक अशांत मिश्रण है।
इसकी वजह से ऐसे तेज़ तूफ़ान आते हैं जो सदियों से जारी हैं। लेकिन चलिए मान लेते हैं कि बृहस्पति इससे भी बड़ी चीज़ सूरज के संपर्क में आता है।
क्या सूरज बृहस्पति के वातावरण को ख़त्म कर देगा? और अगर ऐसा होगा तो ये कैसा नज़र आएगा?
क्या है जो बृहस्पति को एक विशाल गैस का गोला बनाता है ? बृहस्पति का कोर किसका बना है ? और hot Jupiter's और hot Neptune's क्या होता है ?
आप पढ़ रहे हैं ‘‘क्या हो अगर’’ और ये है क्या हो अगर बृहस्पति अपना वातावरण खो दें ?
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बृहस्पति का गुरुत्वाकृषण पृथ्वी के मुक़ाबले लगभग ढ़ाई गुना ज़्यादा मज़बूत है जिसकी वजह से किसी वातावरण का इससे अलग होना मुश्किल है।
ख़ुशक़िस्मती से इसकी वजह से आने वाले एस्टेरॉयड्स भी रुक जाते हैं। बृहस्पति में गैसों की एक गाढ़ी परत है जिसमें 90 फ़ीसदी हाइड्रोजन और 10 फ़ीसदी हीलियम और थोड़ी मात्रा में अमोनिया, सल्फ़र, मीथेन, और भाप भी मौजूद है।
इसका एक फैला हुआ, पत्ला कोर है जो पथरीली चीज़ों, हाइड्रोजन और हीलियम से मिल कर बना है। और पृथ्वी से अलग बृहस्पति के कोर और इसके बाहरी वातावरण के बीच अंतर दिखाने वाली कोई साफ़ परत नहीं है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि ये कोर साढ़े चार अरब साल पहले बृहस्पति और पृथ्वी से 10 गुना ज़्यादा भारी एक प्लैनेटरी इम्ब्रियो यानी शुरुआती ग्रह के बीच हुए आमने-सामने के टकराव की वजह से बना हो सकता है।
नासा के ट्रांसिस्टिंग एक्सोप्लैनेट सर्वे सैटेलाइट या TESS से हाल में खोजे गए एक बाहरी ग्रह L.T.T 9779B की मदद से बृहस्पति के बनने और उसकी संभावित तबाही से जुड़े और भी सवालों के जवाब मिल सकते हैं।
नासा की बृहस्पति-जैसे बाहरी ग्रह L.T.T 9779B की खोज से वैज्ञानिक इस ग्रह और इसके तारे के बीच चौंका देने वाली नज़दीकी को देखकर हैरान हैं।
जहां बृहस्पति सूरज से एक सुरक्षित दूरी बनाकर रखता है वहीं L.T.T 9779B अपने तारे से इतनी नज़दीकी पर है कि इसका वातावरण बढ़ती हुई गति के साथ भाप में बदलता जा रहा है।
इसे ख़ास बनाती है ये बात कि पृथ्वी या बृहस्पति जैसे ग्रहों के लिए नज़दीकी ऑर्बिट्स आम तौर पर उलट जाते हैं। लेकिन L.T.T 9779B का आकार कहीं बीच में आता है यानी वरुण ग्रह से मिलता जुलता।
1,725 डिग्री सेल्सियस (3137 डिग्री फॉरेन्हाइट) के तापमान वाला बेहद गर्म ग्रह होने की वजह से अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने इसे हॉट नेप्च्यून यानी गर्म वरुण का नाम दिया है।
बहुत बढ़िया। अपनी बताऊं, तो मैं इसे नाम देता, नीली आग। अंतरिक्ष वैज्ञानिकों का मानना है कि ये बाहरी ग्रह अपने तारे से दूर बना होगा और धीरे-धीरे लाखों सालों के वक़्त में इसके क़रीब आता रहा होगा।
ये अपने तारे के जितना क़रीब जाता है इसका वातावरण और ज़्यादा भाप बनता चला जाता है जिससे इसे एक पिचका हुआ लगभग फुटबॉल जैसा आकार मिल जाता है।
अह, अमेरिकी फुटबॉल जैसा। L.T.T 9779B अपना वातावरण खो रहा है क्योंकि ये उस नाज़ुक दूरी को पार कर चुका है जहां एक ग्रह अंतरिक्ष की दूसरी चीजों की टाइडल यानी ज्वारीय ताक़तों के चलते अपना वज़न खोना शुरू करता है। इसे रोश लिमिट कहते है।
ख़ुशक़िस्मती से, बृहस्पति सूरज से इतनी दूर है कि ये अपना भार बनाए रख सकता है। और बृहस्पति के चांद उससे इतनी दूर हैं कि बृहस्पति इन्हें सोख ना ले।
तो क्या वजह है कि बृहस्पति जैसे गैस से बने ज़्यादातर ग्रह सूरज से इतनी दूर रहते हैं?
वैसे हर ग्रह एक ही तरह का बना होता है। सूरज के गुरुत्वाकृषण से धूल और पत्थर साथ आए। जहां सूरज ने सौर मंडल के अंदर की तरफ़ मौजूद ग्रहों पर हाइड्रोजन और हीलियम जैसी गैसों को फेंका वहीं बाहरी ग्रह ठंडे रहे।
इससे उन ग्रहों को वातावरण बना पाने के लिए सही तापमान और पदार्थ मिल सके। कुछ अंतरिक्ष वैज्ञानिकों का कहना है कि कुछ ऐसे पृथ्वी-जैसे ग्रह भी हैं जो एक वक़्त पर गैस का गोला रहे होंगे।
अनजान कारणों के चलते, वो रोश लिमिट में जा चुके हैं और हॉट अर्थ्स यानी गर्म पृथ्वी जैसा रूप ले रहे हैं। हॉट जुपिटर्स यानी गर्म बृहस्पति भी मौजूद हैं जैसे कि एक्सोप्लैनेट 51 पेग जो कि आकार में समान है और हर चार दिन में अपने तारे का एक चक्कर पूरा करता है।
बृहस्पति का वातावरण खोना शुरू हो इसके लिए इसे सूरज के क़रीब आना होगा और रोश लिमिट को पार करना होगा। हालांकि ये होने की संभावना बहुत कम है पर अगर बृहस्पति सूरज की तरफ़ बढ़ जाता है तो ये धीरे-धीरे एक घुमावदार रास्ता लेकर इसके क़रीब जाने लगेगा। हर चक्कर के साथ ये और ज़्यादा वज़न गंवाने लगेगा।
आख़रिकार, ये इतना क़रीब आ जाएगा कि एक ही दिन में सूरज का चक्कर पूरा करने लगेगा यानी बुध की तुलना में 88 गुना ज़्यादा तेज़। सूरज की तेज़ सौर पवन से बृहस्पति को एक कॉमेट की तरह गैस की पूंछ मिल जाएगी।
गैस का ये बड़ा-सा बादल कई तारों की रोशनी को रोक सकता है जिससे हमारा रात का आसमान काफ़ी सूना हो जाएगा। इस धीमी प्रक्रिया के दौरान बृहस्पति धंस जाएगा और आखिरकार अपने वातावरण को खो देगा।
ये एक बंजर पथरीला ग्रह बन कर रह जाएगा बुध जैसा लेकिन पृथ्वी से 11 गुना बड़े आकार का। जैसे-जैसे हम हॉट जुपिटर्स या हॉट नेप्च्यून्स जैसे बाहरी ग्रहों की खोज जारी रखेंगे वैज्ञानिक ग्रहों की बनावट को बेहतर तरीक़े से समझ पाएंगे जो कि ब्रह्माण्ड को समझ पाने के लिए बेहद ज़रूरी है।
शायद बृहस्पति का अपना वातावरण खो देना एक अच्छी चीज़ साबित हो। इतनी सारी गैस के साथ सूरज की ऊर्जा कम होने पर हम उसे दोबारा ऊर्जा दे सकते हैं।
हमेशा की तरह जानने के लिए पढ़ते रहें ‘‘क्या हो अगर’’ .