ज़रा सोचिए, चांद पर रहना कैसा होगा। आपको पृथ्वी का अच्छा खासा नज़ारा, ज़ीरो ग्रैविटी का लुत्फ और एक एस्ट्रोनॉट की तरह जिंदगी जीने का मौका मिलेगा। सुनने में मज़ेदार है ना। पर हाँ, चांद पर रहना इससे बिल्कुल अलग होगा।
तो असल में चांद पर रहना कैसा होगा? कोन सा देश यहां सबसे पहले बेस बनाएगा? और क्या चांद पर मिलने वाली धूल होगी आपकी सबसे बड़ी समस्या?
आप पढ़ रहे हैं “क्या हो अगर” और ये है क्या हो अगर हम चांद पर बस जाएं?
तो चलिए समझते हैं, ठीक जैसे अमेरिका ने 1969 में किया था, इंसान अगले दशक में एक बार फिर चांद पर लैंड होंगे, लेकिन इस बार बसने के लिए।
जिस बात को पूरे भरोसे से नहीं कहा जा सकता, वो ये कि कौन सा देश पहले यहां पहुंचकर अपना बेस बनाएगा। चीन, अमेरिका, रूस, भारत, ये सभी देश इन्हीं कोशिशों में लगे हुए हैं।
लेकिन इस दौड़ में स्पेसेक्स और ब्लू ओरिजिन जैसी कंपनियां भी शामिल हैं, इनके पास चांद पर जाने की कोशिश करने के लिए बेशुमार पैसे हैं। लेकिन रुकिए, ये कंपनियां ऐसा क्यों कर रही हैं?
गैलेक्सी को एक्सप्लोर करने और नई खोज करने के अलावा, एक और बड़ी वजह है कि ये ग्रुप चांद पर अपना बेस बनाना चाहते हैं। और वो वजह है पैसा। चांद कई अलग-अलग तरह के संसाधनों से भरा है। यहां सोना, चांदी और टाइटेनियम हैं।
तो चांद(क्या हो अगर हम चांद पर बस जाएं?)पर बेस बनाने के पीछे की वजह है इन संसाधनों का खनन कर पाना और इन्हें पृथ्वी तक भेज पाना। यहां एक और संसाधन है- हीलियम-3। ये पृथ्वी पर बेहद कम मात्रा में होती है, पर चांद के साथ ऐसा नहीं है।
ऐसा इसलिए कि चांद का कोई वातावरण नही है, और हीलियम-3 सूरज से निकलने वाली रेडिएशन से आती है। अरबों सालों से, चांद इस केमिकल को सोख रहा है और खुश्किस्मती से, ये ऊर्जा के लिए इस्तेमाल हो सकता है।
हीलियम-3 इतना शक्तिशाली है कि केवल 100 किलोग्राम (220 सइे) से आप टेक्सस के डैलस जैसे शहर के लिए एक साल तक ऊर्जा बना सकते हैं। और हाँ, इसके केवल 28 ग्राम (1 आउंस) की कीमत है 40,000 डॉलर।
अब चूंकि इन संसाधनों की कीमत इतनी ज़्यादा है, ये बात किसी से छुपी नहीं है कि ये देश या कंपनियां सबसे पहले बेस बना पाने की होड़ में हैं। लेकिन अगर वो बेस बना भी लेते हैं, तो भी वो मालिक नहीं बनने वाले।
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1967 में, संयुक्त राष्ट्र ने ये फैसला लिया था कि कोई भी अंतरिक्ष पर मालिकाना हक नहीं रख सकता। इसे लेकर अलग-अलग देशों के बीच तनाव बढ़ सकता है और बात जंग तक जा सकती है। पर इस ड्रामे के बारे में तो काफी बात हो गई। आप चांद पर हैं।
• तो, आप आखिर यहां कैसे रहने वाले हैं?
मान लेते हैं कि हम सही सलामत चांद पर पहुंच जाते हैं, हालांकि ये अपने आप में ही एक बड़ी बात होगी, पर इसके बाद आपको बेस बनाने की चिंता करनी होगी।
जानकारों का सुझाव है कि हमें दक्षिणी हिस्से में रहना चाहिए, क्योंकि यहां पर सूरज की रोशनी लगातार एक जैसी रहती है यहां बर्फ से घिरे बड़े हिस्से भी हैं, जो पैदावार के काम आ सकेंगे। चांद के कुछ और भी हिस्से हैं जहां लगभग एक महीने तक के लिए ज़रा सी भी रोशनी नहीं आती।
खुश्किस्मती से आपके पास इस काम के लिए रोबोटस होंगे। ये कई तरीकों में आपके काम आ सकते हैं। उनमें से एक काम है चांद(क्या हो अगर हम चांद पर बस जाएं?)पर मौजूद मिट्टी से ईंटें बनाना और इन्हें गुंबद के आकार में लगाना। जैसे कि एक मूंग्लू।
ये चांद तक जाने को किफायती बना देगा क्योंकि हमें बेस बनाने के लिए सारी चीज़ें पृथ्वी से नहीं ले जानी होंगी। लेकिन आप ज़्यादा फैंसी बेस की कल्पना ना करें। ज़्यादा संभावना ये ही है कि ये सतह के कई मीटर नीचे हो ताकि आप सूरज की रेडिएशन से बच सकें।
• और अब बात इसकी कि आप खाएंगे क्या?
ये तो वही अंतरिक्ष यात्रियों वाला ड्राय फूड होगा। लेकिन अच्छी बात ये है कि आप कुछ गाजर और टमाटर उगा सकेंगे 2014 में एक डच शोध में पाया गया कि चांद की मिट्टी पर चीज़ें उगा पाना मुमकिन है।
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• और आप पिएंगे क्या?
बदिकस्मती से, ज़्यादातर जो आप पिएंगे वो आप ही की रिसाईकल की गई पेशाब होगी क्योंकि पीने लायक पानी चांद पर मौजूद नही है, और वहां तक पानी ले जाना तो बहुत ही मुश्किल होगा।
एक और चीज है जिसकी आपको काफी फिक्र करनी होगी चांद पर मौजूद धूल। ये चुंबकीय धूल सब जगह पहुंच जाती है। ये आपके सूट पर लगेगी और यहां तक कि आपकी त्वचा पर भी।
पहले के अंतरिक्ष यात्रियों को इससे एलर्जी भी हो चुकी है, ये थोड़ा शार्प भी होता है, यानी अगर आप इसे गलती से निगल लेते हैं, तो बहुत बड़ी समस्या हो सकती है। लेकिन चांद की धूल की चिंता केवल इंसानों तक सीमित नहीं है।
ये मशीनों के अंदर भी जा सकती है, जिससे ये ओवरहीट हो जाएंगी। इससे पहले कि हम चांद पर बसें, ये एक बड़ी समस्या है जिसका हल हमें ढ़ूँढना होगा।
इन सभी मुद्दों से ज़हन में एक सवाल आता है, क्या आप वाकई चांद पर बसने वाले पहले शखस होना चाहेंगे?
काफी हद तक संभव है कि आप अपना ज़्यादातर वक़्त केवल खनन और जीने की कोशिशों में बिता रहे हों, और ज़ीरो ग्रैविटी का लुत्फ उठाने का ज़रा भी वक़्त आपको ना मिले। और वैसे भी, हम सभी जानते हैं कि चांद पर जाना असल में हमारा पहला कदम है मंगल पर जाने की दिशा में।
तो शायद हमें उसका ही इंतज़ार करना चाहिए। लेकिन इस पर चर्चा के लिए पढ़ते रहें ‘‘क्या हो अगर’’ .
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