क्या हो अगर हम अपना सारा कचरा अंतरिक्ष में भेज दें? What if we sent our Garbage to Space?

क्या आप जानते है कि पूरे विश्व में हर साल 1.2 बिलियन टन कचरा पैदा होता है। साल 2100 तक विश्व में 3.6 बिलियन टन कचरा पैदा होगा।

गड्ढों में कचरा भरने पर हम कब तक निर्भर रह सकते हैं? क्या हो अगर हमें ज्यादा जगह चाहिए हो तो ? इसका कितना खर्च आएगा? और कैसा इंफ्रास्ट्रक्चर चाहिए होगा? और इसमें क्या ग़लत हो सकता है ?

आप देख रहे हैं ‘‘क्या हो अगर’’ और ये है क्या हो अगर हम अपना सारा कचरा अंतरिक्ष में भेज दें? 

Image credit :- solutionsforspacewaste.com

हमारी पृथ्वी पर पहले ही बहुत कचरा है और स्थिति और भी बुरी होती जा रही है । ऐसे में, इस सारे कचरे को अंतरिक्ष में भेजना एक आसान उपाय है । 

हम अंतरिक्ष में तो 1950 से जाते रहे हैं । ऐसे में,ये कर पाना पहले से ज्यादा आसान है । हाँ, ये संभव है। हम अपना कचरा अंतरिक्ष में भेज सकते हैं। पर यकीनन ये उतना आसान नहीं होगा । 

ये बहुत महंगा प्रयास होगा जिसमे हर साल कई मिलियन रॉकेटों को लांच करने की आवश्यकता होगी जो की न सिर्फ हमारे ग्लोबल वातावरण को नुकसान पहुंचायेगा बल्कि भविष्य में अंतरिक्ष की यात्रा में बाधा भी पैदा करेगा । और ये तब जब सब हमारे प्लान के मुताबिक होगा । 

अंतरिक्ष युग कि शुरुआत से अब तक 5038 राकेट अंतरिक्ष में लांच किये जा चुके हैं । अंतरिक्ष में जांच के लिए हम नेप्चून ग्रह तक यान भेज चुके हैं । साल 2018 में नासा ने सूर्य के बाहरी वायुमंडल पर भी एक यान भेजा था । इस के मुताबिक, हमारा सोलर सिस्टम इस काम के लिए तैयार है । 

• पर ये काम होगा कैसे ? :- 

एक आरियान - 5 राकेट 7000 किलोग्राम तक का भार धरती की कक्षा में एक स्थिर बिंदु तक ले जा सकता है । इसमें लगभग 200 मिलियन डॉलर

पर जैसे की विश्व में हर साल 1.2 ट्रिलियन किलोग्राम का कचरा पैदा होता है, इसलिए इस धरती को कचरा-मुक्त रखने के लिए हमें ऐसे 168 मिलियन आरियान -5 S रोकेट हर साल लांच करने होंगे । और इन सब पर हर साल करीब 33 क्वाड्रिलियन डॉलर का खर्च आएगा। 

हमें ऐसा करने के लिए खुद को तैयार करना होगा । और क्यूंकि अभी विश्व का G.D.P 77 ट्रिलियन डॉलर है, इसलिए हम अभी थोड़ा पीछे हैं । हम सिर्फ पैसों से ही नहीं, साधनों से भी पीछे हैं । 

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2017 में, 91 ऑर्बिटल रॉकेट लांच किये गए, जो के सुनने में भले ही ज्यादा लगें, पर ये 168 मिलियन लॉन्चेस के सामने कुछ भी नहीं जो के हमें चाहिए होंगे । 

असल में, अगर हमें अपना कचरा अंतरिक्ष में भेजना है, तो हमे, बहुत सारे नए स्पेस पोर्ट्स, लांच पैड्स बनाने होंगे । वो भी जल्द । मान लें के हम किसी तरह इस ढाँचे को तैयार कर लेते हैं, फिर भी कुछ चीजें हैं जिन पर हमारा नियंत्रण नहीं है । 

रूस की ‘‘सोयूज’’ अंतरिक्ष लांच प्रणाली अब तक की सबसे सफल प्रणाली है । इसकी सफलता दर प्रति 1000 लॉन्चेस के लिए 97 प्रतिशत है । 

अब अगर हम 170 मिलियन लॉन्चेस के साथ कुछ विपरीत परिस्थितियों को लेकर चलें जब हर एक रॉकेट 7000 किलोग्राम का कचरा ले जा रहा है, तो सिर्फ 3 प्रतिशत की असफलता दर ज्यादा दिलासा नहीं देती? है ना? 

एक साल में कुछ असामन्य दुर्घटनाओं का हमारे वायुमंडल, महासागरों और मिटटी पर बहुत भयानक असर पड़ेगा । इसके साथ ही उस जानमाल के नुकसान का भी सोचें जो तब होगा जब आसमान से प्लास्टिक और भारी धातुओं की वर्षा होगी ।

तब क्या होगा जब एक असफल रॉकेट पूरे अंतरिक्ष में न्यूक्लियर वेस्ट ले के जायेगा ? तब क्या होगा जब इस स्पेस वेस्ट प्रोग्राम से होने वाली दुर्घटनाएं और रेडिएशन हमारे धरती को रहने लायक नहीं छोड़ेंगी?

• क्या हम इससे बच पाएंगे ? :- 

1978 में नासा के एक वैज्ञानिक डोनाल्ड. जे. केस्लेर ने ये सिद्धांत दिया था की समय के साथ अंतरिक्ष में मलबा इतना बढ़ जायेगा, के हमारे सैटेलाइट्स धरती की कक्षा से बाहर नहीं जा पाएंगे । 

हम एक जहरीली दुनिया में अपने ही कचरे से घिर कर सड़ना शुरू हो जायेंगे हम ये सोचना पसंद नहीं करते की आखिर हमारा कचरा कहाँ जाता है? बस खुश हो जाते हैं की हमारे सामने से गायब हो गया है बेशक, हम इसे असल में गायब नहीं कर सकते। 

और न ही इसे अंतरिक्ष में इस उम्मीद के साथ भेज सकते हैं की वो चला जायेगा क्यूंकि क्या होगा अगर वो वापस आ जाये तो? वैसे ये एक दुसरे ‘‘क्या हो अगर’’ का विषय है ।  

तो पढ़ते रहे “क्या हो अगर ”.

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