हमने चेतावनियां सुनी हैं। पर हम नहीं माने। पूरी तरह से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का विकास इंसानी सभ्यता के अंत की वजह बन सकता है। अब, हम एक ऐसी दुनिया में रह रहे हैं जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता के क़ाबू में है।
हमने ये कैसे होने दिया ? क्या हम जिंदा बचेगे? और क्या दुनिया यह ख़तम हो जाएंगी?
आप पढ़ रहे हैं “क्या हो अगर” और ये है क्या हो अगर हम एक सुपरइंटेलिजेंस बना लें?
वो दिन जो सीरी, और एलेक्सा जैसे ए.आई के साथ हमारी ज़िंदगी को बेहतर बना रहे थे अब ख़त्म हो चुके हैं। अब हम ए.आई को नहीं चलाते बल्कि वो चाहे, तो हमें चला सकती है।
एक सुपरइंटेलिजेंस बनने पर, ये नहीं कहा जा सकता कि ये क्या करेगी। एक चीज़ जो हम जानते हैं वो ये कि ए.आई किसी भी इंसान से कहीं ज़्यादा तेज़ होगी। ये तेज़ी से ऐसी नई तक़नीकें बना देगी जिसे आज के वक़्त में इंसान सपने में भी नहीं सोच सकते।
हम आखि़र यहां तक पहुंचे कैसे? :-
पहले डिजिटल कंप्यूटर का आविष्कार 1937 में हुआ था जिसे इंसानियत की मदद के लिए बनाया गया था। और ज़्यादातर मौकों पर हमें कंप्यूटरों और ए.आई से फ़ायदे ही मिले हैं।
हमें हमारे स्मार्टफोन्स, इंटरनेट और वीडियो गेम मिलने के अलावा इसकी मदद से हम अपनी गैलेक्सी की खोज कर सके नई दवाइयां और यहां तक कि रोबोट्स भी बना सके।
इंसानी इंटेलिजेंस की वजह से इस तक़नीक का जन्म हुआ। पर जहां हमारी ओर से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर सुधार जारी है ए.आई ख़ुद इतनी समझदार हो सकती है कि अपने आप को चलाने लगे। तक़नीक इतनी आगे निकल जाएगी कि इसे चलने के लिए इंसानों की ज़रूरत नहीं रह जाएगी और ये बेक़ाबू हो जाएगी।
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क्योंकि ए.आई जो चाहे वो करने के लिए आज़ाद होगी ये हर गुज़रते पल के साथ ख़ुद का विकास करती जाएगी। इसे टेक्नोलॉजिकल सिंग्यूलैरिटी यानी तक़नीकी विलक्षणता कहा जाता है। ये टेक्नोलॉजिकल सिंग्यूलैरिटी ए.आई से लगभग कुछ भी करवा सकती है यहां तक कि शारीरिक रूप से भी जैसे कि रोबोट्स का हमारी मशीनों पर क़ाबू पाना।
जब ऐसा होगा, तो ये अपनी मशीनें बनाने लगेंगे। और सच कहें तो, जब तक ऐसा कुछ होगा काफ़ी संभावना है कि तब तक इंसान एक ऐसी ए.आई बना चुके होंगे जो ख़ुद से चीज़ें बना सके।
अगर ऐसा कुछ होता है तो ये काफ़ी हद तक इंसानों के लिए बुरी ख़बर ही साबित होगी। और बद्क़िस्मती से, यहां सवाल ‘‘कब हो अगर’’ का है ना कि ‘‘क्या हो अगर’’ का।
1980 के दशक से, ए.आई और तक़नीक के जानकार ये भविष्यवाणी करते आए हैं कि ऐसा होगा। कुछ का मानना है कि ये इस सदी के बीच भी हो सकता है।
अगर ऐसा होता है, तो इसके हमारे यानी इंसानों के लिए क्या मायने होंगे? :-
ये तो हमारे ए.आई मालिक़ ही तय करेंगे। इस दुनिया में, इंसान असल में जगह घेरने वाले मांस के बेकार टुकड़े बनकर जाएंगे। जानता हूं, काफ़ी बेइज्ज़ती की बात है पर अगर ए.आई ने हर चीज़ को क़ाबू में कर लिया तो हम इतने काम के नहीं रह जाएंगे।
हर वो काम जो ए.आई करना चाहती है, वो अगर इंसान करेंगे तो उसकी रफ्तार कम होगी और वो उतना अच्छा भी नहीं होगा। पर अगर ए.आई किसी तरह से हमें अपने बीच रहने का मौका दे देती है, तब क्या होगा?
उम्मीद करते हैं कि वो हमारी फसलें हटाकर रोबोट बनाने के कारखाने ना बना ले। ए.आई को खाने की ज़रूरत नहीं होती इसलिए काफ़ी संभावना है कि वो हमारी कमज़ोर इंसानी ज़रूरतों का ख़याल नहीं रखेंगे।
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और इंसान इन चीज़ों का करते क्या हैं? अरे, वो क्या नहीं करते थे वो इसे उछाला करते थे अगर वो हमें हमारा खाना उगाने और बनाने नहीं देते हैं तो वक़्त के साथ सब ख़त्म हो जाएगा जिसके बाद हम इंसानों के पास कुछ नहीं बचेगा।
ए.आई हमें केवल तब ज़िंदा रख सकती है, जब किसी वजह से वो हमें रखना पसंद करे पालतू की तरह। हम उनके साथ वक़्त बिताएंगे उनका साथ देंगे शायद उन्हें गले भी लगाएंगे ठीक वैसे जैसे हमारे पालतू हमारे लिए करते हैं।
ऐसी ज़िंदगी इतनी बुरी भी नहीं होगी। हर वक़्त घर पर रहना, कोई आपको खाना खिलाए और दुनिया की कोई फ़िक्र ना हो। आह! इंसानी प्रजाति के साथ शायद सबसे बेहतर ये ही हो सकता है क्योंकि हमारी मौजूदा स्थिति को देखते हुए ये मुमक़िन नहीं है कि हम एक सुपरइंटेलिजेंस को हरा सकें।
एक तरीक़ा जिससे हम ए.आई को हरा सकते हैं वो ये है कि हम अपने शरीर को तक़नीक के साथ जोड़कर साइबोर्ग बन जाएं। इंसानी प्रजाति को एक अलग तरह का विकास दें जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस शामिल हो।
पर क्या हम वाकई ऐसा कर सकते हैं? जानने के लिए पढ़ते रहें ‘‘क्या हो अगर’’ .